Father's Day Special
फेसबुक के ही माध्यम से 'फादर्स डे' का पता चला और ये भी ज्ञान प्राप्त हुआ कि पापा भी स्वीट और लव यू बोलने लायक हुआ करते हैं. बिल्कुल नयी वाली पीढ़ी के लिए तो यह लॉजिकल है लेकिन हम जैसे और हमसे पहले के लोग शायद पापा को 'स्वीट' मानने से पहले सौ बार सोचें.
वो पापा जो पतंग उड़ाते देख लेते और अपनी तरफ आने लगते तो सांस अटक जाती थी. गलती से कभी अगर उनका मूड बन जाए पढ़ाने का तब जान पे बन आती थी. घर में छोटी से छोटी गलती न हो इसके लिए चौकन्ना रहना पड़ता था. कुल मिला के पापा बचपन में खूंखार दीखते थे उनका सामने आना अपना सर कद्दू सा लटका लेने की चेतावनी होती थी.
पढ़ने से समझ आया कि बाप की कमजोरियां भी है ताकत भी..
ताकत यूं कि एक आम बाप बड़ी ही जल्दी अपने बच्चों से अलग हो जाता है. बात अजीब ज़रूर लगती है, मगर यूं ही होता है. उस बाप पर प्रेशर होता है. घर चलाने का. उसकी नौकरी बचाने का. बच्चे को भूखे पेट न सोने देने का. आस पास की बातों को सुनने का और जितना हो सके उन्हें इग्नोर करते रहने का. कमजोरी ऐसे कि उनकी मजबूरी होती है बच्चों से प्यार करते रहना. उनसे दूर रहकर.
छोटे शहरों के मां-बाप सदियां गुज़र जाती हैं और अपने बच्चों को गले नहीं लगाते. उनमें वो फीलिंग ही नहीं होती. एक झिझक होती है. संकोच होता है. बहुत खुश हुए तो कुछ अच्छा खिला दिया. या बाज़ार से कुछ ले आये. वहां बाज़ार से कुछ ला दिया जाना इस बात का सूचक होता है कि देखो तुमने इतना अच्छा काम किया जो ये लाना पड़ा. बस. हो गया. पीठ पर एक थपकी, मुंह से निकला हुआ ‘शाबाश!’ वगैरह कुछ नहीं. और इसी के साथ अगले मौके पर अपने बच्चों के साथ एकदम निर्मम व्यवहार. मुझे याद है कि मैंने कई बार अपने पापा से इस कदर मार खाई है कि सोचता था, ये मुझे कहीं से उठा के तो नहीं लाये हैं. उस वक़्त मेरे मैथ्स में लाये नंबर उन्हें इस कदर कम लगते थे कि वो शायद मेरी जान से ज़्यादा कीमती लगने लगते थे. पढ़ाते हुए डांट-मार ऐसी जगहों पर एक बहुत ही आम बात है.
ये बाप क्रूर होते हैं. एकदम भावनाहीन. जो अपने बच्चे को सोते हुए देख उसके पैर दबाने चले आयेंगे. मगर उसके सामने पत्थर के बने रहेंगे. हंसी मज़ाक तो बहुत ही ज़्यादा दूर की बात रहती है. ऐसे बाप जब दिल्ली-मुंबई अपने बेटे के पास आते हैं तो बेटा उनके साथ बाहर घूमने में झिझकता है. उसे आस पास हाथ पकड़े लोग दिखते हैं. उसे दिखते हैं वो लोग जो दिखते ही गले मिलते हैं. जो एक दूसरे को बताते हैं कि वो उन्हें कितना पसंद करते हैं. और ऐसे में साथ में बाप हो तो एक बेहद ऑकवर्ड सिचुएशन हो जाती है. क्यूंकि उसे उनकी हथेली की गर्माहट हमेशा गालों पर महसूस हुई थी. पीठ या सर पर नहीं.
लेकिन समझ विकसित हुई तो यह मालूम हुआ कि वह न तो खूंखार हैं न ही स्वीट. वह तो पूरे परिवार को ठंडी छाया देने वाले वटवृक्ष हैं.
उनकी स्वीटनेस का अंदाजा अपना छोटा दिमाग कभी लगा ही नहीं सकता. अपनी छोटी बड़ी गलतियों पर उनसे डांट, मार और माफ़ी पाते हम इतने बड़े हो गए कि पापा बनने के बाद पापा होने का रहस्य समझ में आया .उनके होने से कभी कोई मुश्किल, मुश्किल नहीं जान पड़ती,
दंगल वाला बाप याद होगा आपको जो अकेला गिरा देता था तालाब में कह के कि हर बार बचाने तेरा पापा ना आवेगा पर जहां बच्चा हल्का पड़ा तुरन्त दौड़ कर मदद करने चला गया।
जी हां वही होता है बाप,
जिसकी छाती खुरदुरी होगी पर उससे कोमल दिल ना मिलेगा।
इतना जरूर समझा हूँ कि एक बार बाप का कहना "मैं तेरे साथ हूँ बेटा हमेशा" इसमें इतनी ताकत है शायद मृत में जान फूंक दे, ये शायद ब्रहमास्त्र हैं उसके बाद सब किया जा सकता है।
इससे आगे कुछ नहीं लिखूंगा नहीं पापा को पता चल गया तो फिर सोचेंगे कि 'आज शायद पैसे चाहिए इसे'....🙃
Miss Lipsa
26-Aug-2021 07:03 AM
Wow
Reply
Aliya khan
20-Jul-2021 07:08 PM
👏👏👏👏
Reply
ऋषभ दिव्येन्द्र
20-Jun-2021 06:12 PM
यथार्थ लिखा आपने भइया 👌👌 कदाचित् आज की युवा पीढ़ी उन सब बातों से अनजान है जिन्हें देखा या भुगता है हमने 😁😁
Reply